जूनियर कक्षाओं तक सनातन शिक्षा की आवश्यकता : उदितानंद
जगम्मनपुर, जालौन। भारतीय संस्कृति की रक्षा व देश के गौरव की पुनर्स्थापना के लिए प्राथमिक व जूनियर कक्षाओं तक सनातन धर्म से संबंधित व प्राचीन भारतीय संस्कृति की जानकारी देने वाली शिक्षा अनिवार्य की जाए ।
उक्त आशा का वक्तव्य आजाद नगर नवाबगंज कानपुर स्थित विज्ञान मठ दंडी आश्रम के महंत श्री उदितानंद दंडी स्वामी ने देते हुए भारत सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान , उत्तर प्रदेश सरकार में बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह, माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी को संबोधित एक पत्र में भारत की युवा पीढ़ी को सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति के बारे में न्यूनतम स्तर तक जानकारी न होने पर चिंता व्यक्त की है । दंडी स्वामी उदितानंद ने कहा कि गत 800 वर्ष पूर्व हमारा देश अपने ज्ञान एवं उच्च कोटि की संस्कृति के कारण विश्व गुरु के रूप में स्थापित होकर संपूर्ण भूमंडल पर सम्मानित था। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए हमारे 18 पुराण, चार वेद ,छह शास्त्र व अनेक ग्रंथों में ज्ञान का असीम भंडार है जिसमें रसायन, भौतिक, ज्योतिष, आयुर्वेद चिकित्सा, वनस्पति ,जीव उत्पत्ति व उसके विकास ,अंतरिक्ष विज्ञान सहित अनेक विस्मयकारी विज्ञान का अथाह भंडार है । जंगल में आश्रम बनाकर रहने वाले एवं छात्र-छात्राओं को ज्ञानार्जन कराने वाले भारत के प्राचीन ऋषि राजाओं से अथवा समाज से सहायता प्राप्त कर जीवकोपार्जन करने वाले महात्मा मात्र नहीं थे अपितु गुरु परंपरा से प्राप्त ज्ञान के आधार पर निरंतर अन्वेषण करने एवं उन्हें लिपिबद्ध करने में व शिष्यों को शिक्षा देने में निरंतर संलग्न रहते थे । हमारे वनस्पति विज्ञान में एक-एक वनस्पति के गुण दोष एवं जीवन में उनके उपयोग का विस्तृत वर्णन है, इसी प्रकार शल्य चिकित्सा, रासायनिक क्रियाओं के अनेक उदाहरण हैं लेकिन विश्व के अन्य भूखंडों में भारत की ख्याति एवं यहां का असीमित ज्ञान खूंखार एवं असभ्य जाति के लोगों को रास नहीं आने से उन्होंने हमारे देश पर आक्रमण कर शांत एवं सौम्य सभ्य संस्कृति पर कुठाराघात किया। हमारी आध्यात्मिक चेतना के केंद्र मंदिर तोड़े, संपत्ति लूटी ,हमारी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने के लिए जितना किया जा सकता था नराधम आक्रमणकारियों ने वह सब किया हमारे ज्ञान के अथाह भंडार नालंदा तक्षशिला जैसे शिक्षा और ज्ञान के केंद्र पर हमला कर वहां के विद्वानों की हत्या की हमारी असंख्य बहुमूल्य पुस्तकों से भरे पुस्तकालय में आग लगाकर हमारी ऋषियों से प्राप्त धरोहर को नष्ट कर दिया हमारी प्रयोगशालाएं ध्वस्त कर दी और अपनी तलवार की नोक पर अपनी असभ्य संस्कृति सीखने को बाध्य किया , कालांतर में हमारी सनातनी पीढ़ी अपनी प्राचीन गौरवशाली संस्कृति को लगभग विस्मृत कर तलवार की नोक पर दिए गए ज्ञान को असत्य मानते हुए भी उसे अंगीकार कर लिया हमारे पूर्वज संस्कृत की जगह अरबी और उर्दू भाषा सीखने लगे। अंग्रेज आए और उन्होंने हमें मुगल दासता से मुक्त करवा कर अपना गुलाम बना हमारे शिक्षण संस्थान व आश्रमों को पूर्णता बंद कर कॉन्वेंट शिक्षा की तरफ धकेल दिया इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे पूर्वज जो असभ्य और अत्याचारी शिक्षा के बीच जीना मरना अंगीकार कर चुके थे वह अब वह अवैज्ञानिक संवेदनहीन फूहड़ शिक्षा व संस्कृति को पहले से प्राप्त असांस्कृतिक शिक्षा की तुलना में ठीक मानकर उसे आंशिक रूप से स्वीकार कर बैठे इसके बावजूद वह सनातनी अपने प्राचीन इतिहास व संस्कृति को क्षत-विक्षत स्थिति में थोड़ा बहुत जेहन में बसाए रहा। सबसे ज्यादा खराब हालत तो 1947 में बाद आजादी मिलने के बाद हुई जब देश के प्रथम शिक्षा मंत्री नरुल हसन ने भारत में प्राचीन सनातनी इतिहास को हमारी शिक्षा का हिस्सा बनने ही नहीं दिया । अब यदि भारत को पुनः विश्व गुरु एवं सोने की चिड़िया के रूप में देखना है तो भारत की प्राचीन परंपराओं के साथ-साथ चार वेद , 6 शास्त्र, 18 पुराण , अनेक ग्रंथों के अंदर भरे हुए ज्ञान को क्रमशः देने की आवश्यकता है एवं भारत के प्राचीन महापुरुषों के बारे में पढ़ाई जाने की भी जरूरत है।
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जो नहीं चाहते थे कि 800 वर्ष की त्रासदी झेलने के बाद भारत पुनः प्राचीन गौरव हासिल करें उन्होंने हमारे युवा पीढ़ी के मस्तिष्क का शिकार बहुत चालाकी से किया। सत्तर सालों में हजारों कबाड़ गुरू विश्व की चेतना नष्ट करने में लगे हैं। प्रोफेसर इस्लाम वाम तंत्र पढ़ने में लगा दिए गए हैं । भीष्म साहनी का तमस पढ़ाया जाता है । कब ग से गणेश की जगह ग से गधा हो जाता है , कभी समय हो तू सीबीएसई के पाठ्यक्रम को ध्यान से चेक करो तो भारत की संस्कृति को नष्ट करने के कुछ कुचक्र को समझ जाओगे ।कक्षा 6-7-8 में चलने वाली किताब "हमारे पूर्वज" 25 साल पहले बंद कर दी गई। प्राथमिक किताबें सूचीबद्ध करना शुरू कर दो