प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया
“बुद्ध की चेतना शाश्वत है”
“भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित होकर, भारत वैश्विक कल्याण के लिए नई पहल कर रहा है”
“हमने भगवान बुद्ध के मूल्यों और संदेशों का निरंतर प्रसार किया है”
"भारत विश्व के हर मानव के दुःख को अपना दुःख समझता है"
“आईबीसी जैसे मंच समान विचारधारा वाले और समान हृदय वाले देशों को बुद्ध के धम्म और शांति का प्रसार करने का अवसर दे रहे हैं”
“यह समय की मांग है कि हर व्यक्ति और राष्ट्र की प्राथमिकता देशहित के साथ विश्वहित भी हो”
“समस्याओं से समाधान की यात्रा ही बुद्ध की यात्रा है”
“आज दुनिया जिन समस्याओं से पीड़ित है, बुद्ध ने उन सभी का समाधान दिया था”
“बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है”
“मिशन लाइफ बुद्ध की प्रेरणाओं से प्रभावित है और यह बुद्ध के विचारों को आगे बढ़ाता है”
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली स्थित होटल अशोक में विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन किया और बुद्ध प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। उन्होंने उन्नीस प्रतिष्ठित भिक्षुओं को भिक्षु वस्त्र (चीवर दान) भी भेंट किया।
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दुनिया के विभिन्न हिस्से से आए सभी लोगों का स्वागत किया। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि ‘अतिथि देवो भव’ यानी ‘मेहमान भगवान के समान होते हैं’ की भावना, बुद्ध की इस भूमि की परंपरा है और बुद्ध के आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने वाले इतने सारे विभूतियों की उपस्थिति हमें स्वयं बुद्ध के हमारे आसपास होने का अनुभव कराती है। प्रधानमंत्री ने कहा, “बुद्ध व्यक्ति से आगे बढ़कर, एक बोध हैं।“ प्रधानमंत्री ने कहा कि बुद्ध एक अनुभूति हैं जो व्यक्ति से आगे बढ़कर है, वे एक सोच हैं जो स्वरूप से आगे बढ़कर है और बुद्ध चित्रण से आगे बढ़कर एक चेतना हैं। उन्होंने कहा, “बुद्ध की यह चेतना शाश्वत है।” उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े इतने सारे लोगों की उपस्थिति बुद्ध के प्रसार का प्रतिनिधित्व करती है जो मानवता को एक सूत्र में बांधती है। उन्होंने दुनिया के कल्याण के लिए वैश्विक स्तर पर भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों की सामूहिक इच्छा और संकल्प की ताकत को भी रेखांकित किया। इस अवसर के महत्व को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि यह पहला विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन सभी देशों के प्रयासों के लिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा। उन्होंने इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ को धन्यवाद दिया।
प्रधानमंत्री ने बौद्ध धर्म के साथ अपने व्यक्तिगत जुड़ाव पर प्रकाश डाला। उनका गृहक्षेत्र, वडनगर एक प्रमुख बौद्ध केन्द्र रहा है। ह्वेन त्सांग ने वडनगर का दौरा किया था। बौद्ध विरासत के साथ जुड़ाव को और गहरा करते हुए, श्री मोदी ने सारनाथ के संदर्भ में काशी का जिक्र भी किया।
इस बात की ओर इंगित करते हुए कि यह विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन भारत की आजादी के 75वें वर्ष के दौरान उस समय हो रहा है जब देश आजादी का अमृत काल मना रहा है, प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत के पास अपने भविष्य के लिए विशाल लक्ष्य और वैश्विक कल्याण के नए संकल्प भी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत द्वारा हाल में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के पीछे स्वयं भगवान बुद्ध की प्रेरणा है।
परियक्ति (सिद्धांत), पटिपत्ति (व्यवहार) और पटिवेध (सिद्धि) के बौद्ध मार्ग को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने भारत द्वारा पिछले 9 वर्षों की अपनी यात्रा के दौरान इन्हीं तीन बिंदुओं को अपनाने के बारे में विस्तार से बताया। श्री मोदी ने कहा कि भारत ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पण भाव से काम किया है। उन्होंने आईबीसी के सहयोग से भारत और नेपाल में बौद्ध सर्किट के विकास, सारनाथ एवं कुशीनगर, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और लुम्बिनी में बौद्ध विरासत और संस्कृति के भारत अंतरराष्ट्रीय केन्द्र के जीर्णोद्धार के बारे में चर्चा की।
प्रधानमंत्री ने मानवता के मुद्दों के प्रति भारत में एक अंतर्निहित सहानुभूति के लिए भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को श्रेय दिया। उन्होंने शांति मिशन और तुर्किए में भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान बचाव कार्य में भारत द्वारा पूरा सामर्थ्य लगाकर किए गए प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “140 करोड़ भारतीयों की इस भावना को दुनिया देख रही है, समझ रही है और स्वीकार कर रही है।” उन्होंने कहा कि आईबीसी जैसे मंच समान विचारधारा वाले और समान हृदय वाले देशों को बुद्ध के धम्म और शांति का प्रसार करने का अवसर दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, “समस्या से समाधान तक पहुंचने की यात्रा ही बुद्ध की वास्तविक यात्रा है।” भगवान बुद्ध की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने दोहराया कि उन्होंने अपने महलों के जीवन और साम्राज्य को इसलिए त्याग दिया क्योंकि उन्हें दूसरों के जीवन का दर्द महसूस हुआ। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक सुखी विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि स्व से निकलकर संसार और संकुचित सोच को त्यागकर समग्रता के बुद्ध के मंत्र को अपनाया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक बेहतर और स्थिर दुनिया तभी हासिल की जा सकती है जब हम संसाधनों की कमी से जूझने वाले देशों के बारे में विचार करें। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह समय की मांग है कि हर व्यक्ति और राष्ट्र की प्राथमिकता देशहित के साथ विश्वहित भी हो।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान समय इस सदी का सबसे चुनौतीपूर्ण समय है क्योंकि युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आतंकवाद एवं धार्मिक कट्टरता की समस्या और विभिन्न प्रजातियों के लुप्त होने और ग्लेशियरों के पिघलने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौती सामने है। उन्होंने कहा कि इन सबके बीच ऐसे लोग हैं जो बुद्ध और सभी प्राणियों के कल्याण में विश्वास करते हैं। “यही आशा, यही विश्वास इस धरती की सबसे बड़ी ताकत है। जब यह आशा एक हो जाएगी तो बुद्ध का धम्म पूरे विश्व की आस्था बन जाएगी और बुद्ध की अनुभूति मानवता की आस्था बन जाएगी।
श्री मोदी ने बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि आधुनिक समय की सभी समस्याओं का समाधान भगवान बुद्ध की प्राचीन शिक्षाओं के माध्यम से होता है। प्रधानमंत्री ने कहा, भगवान बुद्ध ने स्थायी शांति के लिए युद्ध, हार और जीत के विचार को त्यागने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि दुश्मनी का मुकाबला दुश्मनी से नहीं किया जा सकता और खुशहाली एकता में निहित है। इसी तरह, भगवान बुद्ध की यह शिक्षा कि दूसरों को उपदेश देने से पहले स्वयं के आचरण को देखना चाहिए, आज की दुनिया में प्रचलित दूसरों पर अपने विचारों को थोपने के खतरे को दूर कर सकती है। प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध की अपनी पसंदीदा शिक्षा ‘अप्प दीपो भवः’ की चर्चा करते हुए भगवान की शिक्षाओं की शाश्वत प्रासंगिकता के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कुछ साल पहले संयुक्त राष्ट्र में दिए गए इस कथन की याद दिलाई कि ‘हम वो देश हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं।’
प्रधानमंत्री ने कहा, “बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है। अगर दुनिया ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन किया होता, तो उसे जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना नहीं करना पड़ता। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह संकट इसलिए आया क्योंकि कुछ देशों ने दूसरों और आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचना बंद कर दिया। यह गलती विनाशकारी अनुपात में जमा हुई। बुद्ध ने व्यक्तिगत लाभ के बारे में सोचे बिना अच्छे आचरण अपनाने का उपदेश दिया क्योंकि ऐसा व्यवहार समग्र कल्याण की ओर ले जाता है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे हरेक व्यक्ति किसी न किसी तरह से पृथ्वी को प्रभावित कर रहा है। बात जीवन शैली की हो, चाहे खानपान या यात्रा संबंधी आदतों का। उन्होंने कहा कि हर कोई जलवायु परिवर्तन से लड़ने में योगदान दे सकता है। बुद्ध की प्रेरणाओं से प्रभावित भारत की पहल ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' या ‘मिशन लाइफ’ पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर लोग जागरूक होकर अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं तो जलवायु परिवर्तन की इस बड़ी समस्या से भी निपटा जा सकता है। श्री मोदी ने कहा, “मिशन लाइफ बुद्ध की प्रेरणाओं से प्रभावित है और यह बुद्ध के विचारों को आगे बढ़ाता है।"
अपने संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने भौतिकवाद और स्वार्थ की परिभाषाओं से बाहर आने और ‘भवतु सब मंगलन’ की भावना को आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया, यानी बुद्ध को प्रतीक ही नहीं बल्कि विचार भी बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह संकल्प तभी पूरा होगा जब हम पीछे न मुड़ने और हमेशा आगे बढ़ने के बुद्ध के वचनों को याद रखेंगे। प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि ये सारे संकल्प सभी के साथ आने से सफल होंगे।
केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी, केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री श्री किरेन रीजीजू, केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल एवं श्रीमती मीनाक्षी लेखी और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव डॉ. धम्मपिया इस अवसर पर उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
इस दो- दिवसीय शिखर सम्मेलन का आयोजन 20-21 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन का विषय “समकालीन चुनौतियों का जवाब: प्रथाओं के लिए दर्शन” है।
यह शिखर सम्मेलन बौद्ध और सार्वभौमिक चिंताओं के संबंध में वैश्विक बौद्ध धम्म नेतृत्व और विद्वानों को एक साथ लाने का एक प्रयास है, ताकि इन मामलों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिए नीतिगत परामर्श प्रस्तुत किया जा सके। इस शिखर सम्मेलन में होने वाले विचार -विमर्श के दौरान इस बात का पता लगाया जाएगा कि समकालीन परिस्थितियों में कैसे बुद्ध के धम्म के मौलिक मूल्यों से प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त किये जा सकते हैं।
इस शिखर सम्मेलन में दुनिया भर के प्रतिष्ठित विद्वान, संघ के अग्रणी व्यक्ति और धर्म के अनुयायी भाग ले रहे हैं, जो वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे तथा बुद्ध धम्म में इनके समाधान की तलाश करेंगे, जो सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित होंगे। चार विषयों के तहत विचार-विमर्श किया जाएगा: बुद्ध का धम्म और शांति; बुद्ध का धम्म: पर्यावरण संकट, स्वास्थ्य और स्थायित्व; नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण; बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, जीवंत विरासत और बुद्ध के अवशेष: दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों का सुदृढ़ आधार।