बदलाव वाली दीपावली - स्कूली बच्चों के नेतृत्व में स्वच्छता के लिए चलाया गया व्यापक अभियान
स्रोत पर कचरे को अलग करने के लिए चलाए गए 3 सप्ताह के अभियान से जुड़े 75 लाख बच्चे
यह दिवाली भारत के कई शहरों के लिए पहले के मुकाबले अलग तरह की थी। मगर आमतौर पर दिवाली पर सुनाई देने वाले पटाखों के शोर की जगह ‘हमें गर्व है’ गीत और ‘हरा गीला, सूखा नीला’ के नारों ने ले ली। सड़कों से लेकर गलियों तक मोबाइल वैन और घर-घर से कचरा इकट्ठा करने वाले वाहनों में हरे और नीले रंग के दो डस्टबिन लगाकर उसमें अलग-अलग कचरा डालने के लिए प्रेरित कर रहे थे।
स्रोत पर कचरे गीले और सूखे कचरे को अलग करने के इस व्यापक जागरूकता अभियान में पूरे भारत से लगभग 45,000 स्कूलों के 75 लाख से अधिक छात्रों ने भाग लिया। कचरा मुक्त शहरों का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह अभियान आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा चलाया गया। इतना ही नहीं, हजारों की संख्या में नागरिकों, समुदायों और संगठनों ने अपने शहर के शहरी स्थानीय निकायों, नगर निगमों के नेतृत्व में उत्साहपूर्वक भागीदारी निभाई।
‘स्वच्छता के दो रंग’ नामक इस अभियान में “हरा गीला, सूखा नीला” का संदेश हर घर तक पहुंचाने का आह्वान किया गया, जिसके तहत हरे डस्टबिन में गीले और नीले डस्टबिन में सूखे कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग करने पर जोर दिया गया। अभियान में 2,000 से ज्यादा शहरी स्थानी निकायों ने 31 राज्यों और केंद्र शाषित प्रदेशों में स्कूलों, समुदायों के साथ घर-घर जाकर जमीनी स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए, जिसमें बताया गया कि जहां कचरा निकलता है, वहीं पर गीले और सूखे को अलग कर दिया जाए, तो उसे आसानी से खत्म या रीसाइकल किया जा सकता है। हर उम्र के छात्रों ने पूरे उत्साह से अभियान में शामिल होकर कई तरह की गतिविधियों में भाग लिया, जिसमें पेटिंग, हस्तशिल्प कला के जरिए गीले कचरे के लिए हरे और सूखे कचरे के लिए नीले रंग के लेबल और स्टिकर बनाए। बच्चों ने सूखे कचरे के इस्तेमाल से डस्टबिन, खिलौने आदि बनाए, नुक्कड़ नाटक किए और अपने घरों तक ’स्वच्छता का उपहार’ स्वरूप लेकर गए।
‘स्वच्छता के दो रंग’ अभियान को शुरू करने के लिए असम के खोवाई में छात्रों ने बापू के स्वच्छ भारत के दृष्टिकोण पर नृत्य नाटिका का प्रदर्शन किया। पटना नगर निगम के स्कूली छात्रों ने ‘वेस्ट टू वंडर’ थीम पर कचरे से कई तरह के मॉडल बनाकर गीले और सूखे कचरे के महत्व को समझाया और छोटा भीम जैसे बच्चों के पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर का इस्तेमाल कर जागरूक किया। दिल्ली के एमसीडी स्कूलों ने पज्जल बनाकर उसे सुलझाने के बहाने खेल-खेल में गीले-सूखे कचरे के बारे में जागरूक किया।
इंदौर, जो स्वच्छता सर्वेक्षण अवॉर्ड्स में छह बार देश के सबसे स्वच्छ शहर का खिताब जीत चुका है और 7-स्टार कचरामुक्त शहर है, उसने एक बार फिर दिवाली के बाद स्वच्छता अभियान में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। कुछ अनूठी पहल भी देखने को मिलीं, जहां एनडीएमसी ने स्वच्छता शुभंकर तैयार किया और उसके जरिए लोधी गार्डन में सुबह के समय टहलने निकले लोगों को गीले-सूखे कचरे को अलग रखने का संदेश दिया। असम के तेजपुर म्यूनिसिपल बोर्ड ने ऐसी जगहों पर बैनर और कियोस्क लगाए, जहां काफी संख्या में लोगों का आवागमन होता है। फोरेस्ट घाट पर सेल्फ सस्टेनेबल लोकलिटी के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह और स्थानीय निवासियों के लिए वर्मी कंपोस्टिंग और पिट कंपोस्टिंग का डेमो देते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया। केरल की मलप्पुरम नगरपालिका में अंतरराज्यीय मजदूरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कचरे को अलग करने के अभियान के बारे में जागरूक किया गया। त्रिची नगरपालिका ने सिनेमा हॉल में ऐसे कियोस्क लगाए, जहां कचरे को अलग करने पर क्विज और इंटरेक्टिव जागरूकता अभियान चलाया। भारतीय डाक के अधिकारियों और कर्मचारियों ने देशभर में स्वच्छता से जुड़ी गतिविधियों में खुद को शामिल कर सक्रिय भागीदारी निभाई। कश्मीर के ओपीएस सेक्टर में सीआरपीएफ के जवानों ने सीआरपीएफ कैंप की सड़कों, बगीचों और परिसरों की सफाई के लिए झाड़ू उठाई।
स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण के इस राष्ट्रव्यापी अभियान ने स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और पुराने डंपसाइटों में जाने वाले कचरे को कम करने की दिशा में जमीनी कार्रवाई के माध्यम से केंद्रित भागीदारी शुरू की। बड़े पैमाने पर चलाए गए इस जन आंदोलन में सभी क्षेत्रों के नागरिकों ने विशेष तरीके से कचरे को स्रोत पर अलग करने के बारे में जागरूकता फैलाई और अभियान को एक बड़ी सफलता दिलाई। इसका असर जमीनी स्तर पर पहले ही दिखाई दे रहा है क्योंकि राज्यों ने अपनी पूरी ताकत शहरों को कचरा मुक्त बनाने की दिशा में लगानी शुरू कर दी है।