'महिलाएं- बदलाव की वाहक' विषय पर वेबिनार का आयोजन हुआ
दुनिया भर में मतस्यपालन के व्यवसाय से जुड़े कार्यबल में महिलाओं की संख्या लगभग आधी है। वहीं भारत में मछुआरों की कुल आबादी का लगभग 44 प्रतिशत महिलाएं हैं। महिलाएं विभिन्न प्रकार की मछली पालने से जुड़ी गतिविधियों, छोटे पैमाने पर निकटवर्ती तट पर मछली पकड़ने के कार्यों और सी-वीड की खेती, मछली की सफाई, सुखाने, सॉल्टिंग और औद्योगिक प्रसंस्करण के कार्यों से जुड़ी हुई हैं। वैसे पारंपरिक तौर पर मत्स्य पालन एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है जहाँ महिलाओं के योगदान को मान्यता नहीं दी जाती रही है और उनकी आय का अत्यधिक मूल्यांकन नहीं किया जाता है। इसलिए इस कार्य में संलग्न 1.24 करोड़ महिला कार्यबल के सशक्तिकरण और उत्थान से क्षेत्रीय विकास को और अधिक बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
इन महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, मत्स्य पालन विभाग (एमओएफएएचडी) ने एक वेबिनार का आयोजन किया जिसमें 'महिलाएं-बदलाव की वाहक' विषय पर मत्स्य पालन क्षेत्र में लैंगिक स्तर पर अंतर को कम करने की आवश्यकता पर चर्चा की गई। वेबिनार की अध्यक्षता डॉ. (श्रीमती) सुवर्णा चंद्रप्पागरी, आईएफएस, मुख्य कार्यकारी (सीई), राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), हैदराबाद ने की। इस दौरान डॉ. वी. कृपा, सदस्य सचिव, तटीय जलीय कृषि प्राधिकरण (सीएए), सम्मानित पैनलिस्ट सुश्री वीनू जयचंद, पार्टनर- स्किल डेवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप, अर्न्स्ट एंड यंग, डॉ. श्रीपर्णा बरुहा, हेड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप (आईआईआईई), असम और डॉ. एस. ग्लोरी स्वरूपा, डीजी, नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइसेज, हैदराबाद भी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत मत्स्य विभाग के संयुक्त सचिव (इनलैंड फिशरिज) के स्वागत भाषण से हुई। अपने संबोधन में जेएस (आईएफ) ने क्षेत्र में वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डाला और अतिथि पैनलिस्टों से उन तरीकों, विचारों और पहलों को साझा करने का अनुरोध किया जो महिलाओं को मत्स्य पालन क्षेत्र में मुख्यधारा के काम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। वेबिनार के लिए संदर्भ निर्धारित करने के लिए, डॉ. वी कृपा ने मत्स्य पालन वैल्यू चेन में महिलाओं के सामने आने वाली जमीनी समस्याओं पर प्रकाश डाला और सवाल उठाया कि क्या वर्तमान में किए जा रहे प्रयास और पहलें महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पर्याप्त हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के दौरे के दौरान अपने स्वयं के अनुभव के माध्यम से, अध्यक्ष, डॉ सुवर्णा ने उन मुद्दों पर प्रकाश डाला जहां महिलाओं द्वारा प्रतिदिन कठिन परिश्रम, मुश्किलें और लैंगिक आधार पर पूर्वाग्रहों का प्रमुख रूप से सामना किया जाता है। इस क्षेत्र में महिलाओं को प्रशिक्षण देने और उन्हें सक्षम बनाने में एक सहायक एजेंसी के रूप में एनएफडीबी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया।
इसके अलावा, अतिथि पैनलिस्टों ने विभिन्न समाधानों और अवसरों पर अपने विचार रखे जो लैंगिक अंतर को कम कर सकते हैं। सुश्री जयचंद ने महिलाओं के कौशल और क्षमता निर्माण को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां राज्य सरकारें/ केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन महिलाओं को आगे आने और उन्हें सक्षम बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि हितधारकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उपयुक्त स्किल सेट से मेल खाने के लिए उपयुक्त जॉब रोल्स बनाए जाएं।
डॉ. एस बरूहा ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में हथकरघा उद्योग में महिलाओं के नेतृत्व वाले क्लस्टर की सफलता की कहानी साझा की, जहां 'सामाजिक जुड़ाव' और 'वैल्यू चेन हितधारकों के बीच सहयोग' ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह सुझाव भी दिया गया कि स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में युवाओं के प्रवास को प्रतिबंधित करने में क्लस्टर-दृष्टिकोण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डॉ. जी स्वरूपा ने महिलाओं को उद्यमशीलता के अवसरों का फायदा उठाने के लिए प्रेरित करने की खास रणनीतियों की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह तभी संभव है जब नीतिगत सुधार किए जाएं, ऋण लेने की प्रक्रिया को और आसान बनाया जाए और निर्णय लेने की क्षमता विकसित की जाए। एक सहायक ईकोसिस्टम तैयार करने से महिलाएं और सक्षम बनेंगी और उनमें विश्वसनीयता और आत्मविश्वास बढ़ेगा।