कोरोना ने समझाई फेफड़ों की अहमियत
विश्व सीओपीडी दिवस (17 नवम्बर ) पर विशेष
जालौन : क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी ) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी. दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के सीओपी.ड. दिवस की थीम है- स्वस्थ फेफड़ेः कभी अधिक महत्वपूर्ण नहीं रहे (हेल्दी लंग्सः नेवर मोर इम्पोवर्टेन्ट) किन्तु इस कोरोना काल ने हमें हमारे एक जोड़ी फेफड़ों की अहमियत बता दी है।
जिला क्षय रोग अधिकारी डा. सुग्रीवबाबू का कहना है कि विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा दुनिया भर में सांस रोग विशेषज्ञों और सी.ओ.पी.डी. रोगियों के सहयोग से किया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, विचार साझा करना और दुनिया भर में सी.ओ.पी.डी. के बोझ को कम करने के तरीकों पर चर्चा करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सी.ओ.पी.डी. दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। वर्ष 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी वही भारत में लगभग पांच लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी। अगर हम विश्व की दस प्रमुख बीमारी की बात करें तो सन् 1990 में यह छठवीं मुख्य बीमारी थीं वही अब यह तीसरे नम्बर पर आ गयी है।
धूम्रपान सीओपीडी का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज विश्व में बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा भोजन बनाने में उपयोग होने वाले उपले, लकड़ी, अंगीठी, मिट्टी के चूल्हे के द्वारा निकलने वाले धुएं से भी यह बीमारी हो सकती है। सर्दी का मौसम शुरू को चुका है। इस समय वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है। इसके साथ ही सांस की बीमारियां, निमोनिया एवं क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस का प्रकोप बढ़ने लगा है।
लक्षणः
सी.ओ.पी.डी. की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है।
उपचारः
सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है, इसलिये चिकित्सक की सलाह से दवा की डोज में परिवर्तन किया जा सकता हैं। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के सलाहनुसार संबधित दवाइयां ली जा सकती है। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एन.आई.वी.) का उपयोग भी किया जाता है।
बचावः
सीओपीडी का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को रोकना है, जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं उनको अधिक लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे कोम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओ को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए।
क्या करें :
सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें। मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह कवायद आपको जुकाम, फ्लू तथा कोरोना की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं।